Thursday, August 23, 2012

गुरूद्वारे में नमाज.prayer in gurudwara

गुरुद्वारे में मुसलमानों ने ईद की नमाज़ पढ़ी..
गुरुद्वारे में नमाज़ गुरूद्वारे में नमाज
prayer in gurudwara


Wednesday, August 22, 2012

गुरूद्वारे में नमाज........आदिल रशीद


मुसलमानों ने गुरूद्वारे में नमाज़ पढ़ी.....आदिल रशीद
जाने कैसी पसन्द रखता है
अपनी पलकें वो बन्द रखता है
शीन काफ निजाम  का ये शेर इस बार भी बहुत याद आया जब कल चाँद रात को बच्चों को कपडे दिलाने बाज़ार ले गया.और पूरी कोशिश करने के बाबजूद सब से छोटी बेटी अरनी सहर को हर ईद की तरह इस ईद पर भी संतुष्ट न कर सका क्यूँ की उसकी पसंद इतनी बारीक है के उसकी पसंद का सूट दिलाने में माँ बाप भाई बहिन और दुकानदार सब को पसीने आ जाते हैं बड़ी मुश्किल से किसी तरह उसे मना मुना के लगभग 5 बजे वापसी हुई और घर आ कर उसकी माँ ने और मैं ने एक लम्बी तसल्ली की सांस ली जैसे कोई जंग जीत कर आये हों.
मग़रिब (संध्या) के वक़्त चाँद रात से मुत्तालिक (सम्बंधित) 1988  की  तरही ग़ज़ल का एक शेर:
ईद का चाँद वो भी देखेंगे
आइये चल के चांदनी देखें

फेसबुक पर पोस्ट किया ही था के मोबाइल कि घंटी बजी देखा कारी साहेब का फोन है मैं समझा के चाँद रात है चाँद की मुबारकबाद देने के लिए फ़ोन आया होगा फ़ोन उठाते ही उन्होंने पूछा आप कहाँ हो मैं ने अजराहे मजाक (मजाक में )कहा हुज़ूर बेगम की पनाह में यानि घर में हूँ  वो बोले ज़रा नीचे उतर कर देखना तो फ़ोन आया है कि हमारे घर में चोरी हो गयी है मैं फ़ौरन नीचे उतर कर गया देखा भीड़ लगी हुई है उनके घर का ताला टूटा पड़ा है और घर का सामान बिखरा पड़ा है. कारी साहेब लगभग एक घंटे बाद आ गए साथ में भाभी भी थी घर की तमाम बिखरी हुई चीज़ें उठाई गयी कारी साहेब ने बताया अल्लाह का करम रहा के जेवर पैसा बगैरा सब भाभी साथ ले गयीं थी बेचारे बदनसीब चोर को सिवाय मायूसी के कुछ और हाथ न लगा होगा अलबत्ता मेरे कुण्डी,ताले, दरवाज़े और तोड़ गया

मुझे उस चोर पर बड़ा गुस्सा आया के किसी की चाँद रात और ईद ख़राब करके उसे क्या मिला कितने ज़ालिम होते हैं ये चोर अल्लाह इन्हें बड़ी सख्त सजाएँ देने वाला है तभी कारी साहेब ने एक थैले की तरफ देख कर कहा ये किस का थैला है ये हमारा नहीं है एक साहेब जो पास ही खड़े थे और ज़बान और दिमाग दोनों ही जियादा चला रहे थे बोले अगर ये  आपका नहीं है तो ज़रूर चोर का ही होगा और वो कितनी प्लानिंग से आया था बच्चों के मैले कुचैले कपडे थैले में भरकर ताकि किसी को शक न हो उनकी इस बात से अंदाज़ा हुआ के वो एक ज़हीन जासूसी दिमाग भी रखते हैं
एक साहेब ने वो थैला पलट दिया उसमे 5-6 साल उम्र की लड़की की तीन चार फ्राक थीं मैली कुचैली फटी फटाई सी मुझे तो उन मैले कुचैले कपड़ो में मजबूर बाप की गरीबी नज़र आई कितना मजबूर होगा वो बाप जो ईद पर ये घिनौना काम करने निकल पड़ा ऐसे में मुझे अपना एक शेर याद आया
मुफलिस ने अपनी बेटी से इस बार भी कहा
इस ईद की भी ईदी उधारी है मेरे पास

अल्लाह फरमाता है "हमने कुछ अमीर इसलिए बनाये के वो गरीबों की मदद करें" इस्लाम में सदका फितरा और ज़कात गरीब लोगों की मदद के लिए ही बनाये गए हैं ईद की नमाज़ से पहले अपनी जान का सदका निकालना फितरा कहलाता है वो इस बार ईद पर प्रति व्यक्ति चालीस रुपये था.
अगर आप के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी से अधिक है या आपके पास या इनमे से किसी एक के मूल्य के बराबर रुपया है या एक साल से अधिक समय से बैंक में पड़ा है तो इस्लामी कानून के मुताबिक उस मूल्य का 2.50 प्रतिशत ज़कात आप पर वाजिब है और ज़कात का पैसा हर ईदउल फ़ित्र (रमजान के बाद आने वाली ईद) पर नमाज़ से इतना पहले गरीबों में बाँट दिया जाता है ताकि वो गरीब अपनी ईद की तय्यरियाँ कर सके अपने बच्चों के कपडे आदि बनवा सके.
ज़कात इस्लाम के पांच फ़र्ज़ (अनिवार्य नियम) कलमा ,नमाज़,रोज़ा,हज और ज़कात में से एक है जिसे हर हाल में पूरा करना ही होता है वर्ना आप मुसलमान नहीं अल्लाह इनका बड़ी सख्ती से हिसाब लेने वाला है.
चाँद रात तो साहेब चाँद रात होती है इसलिये चाँद रात को जल्दी सोने का तो कोई मतलब ही नहीं लगभग 4 बजे तक जागते रहे सुब्ह होते ही दोस्तों के फ़ोन आने शुरू हो गए बड़ा अच्छा लगता है इस दिन सब रूठे हुए एक दुसरे को कॉल करते है ईद मुबारक कहते हैं और गिले शिकवे दूर हो जाते हैं  इस्लाम में तीन दिन से जियादा किसी से नाराज़ रहने को मना भी किया गया है

नमाज़ से लौटा तो ख़बरें सुनने के लिए टी. वी  खोला तो देखा के सभी चैनलों पर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने का लाइव टेलीकास्ट चल रहा हैं   (दरगाह अजमेर शरीफ में एक दरवाज़े का नाम जन्नती दरवाज़ा है) सभी चैनल एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर दिखा रहे थे.
मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा मेरे बचपन के दोस्त धर्मपाल सिंह धर्मी का जोशीमठ उत्तराखंड से फ़ोन था वो कालागढ़ से टिहरी वहां से उत्तरकाशी होता हुआ आजकल जोशीमठ में सरकारी जाब में है फ़ोन उठाते ही अपने खास अधिकारिक लहजे में (जिसे मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता)  ईद की मुबारकबाद दी और बताया के तुझे तो पता है यहाँ जोशीमठ में एक भी मस्जिद नहीं है लेकिन कुछ मुसलमान रहते हैं इसलिए जुमे और ईद की नमाज़ एक मैदान में होती है  इस बार हलकी हलकी बूंदा बांदी सुब्ह से ही हो रही थी नमाज़ के समय तेज़ हो गयी और वो मैदान जहाँ नमाज़ होनी थी वहां चारो ओर पानी ही पानी भर गया  अब नमाज़ कैसे हो ऐसे में एक गुरूद्वारे के प्रबंधक श्री बूटा सिंह  ने ये आदेश दिया के गुरूद्वारे के हाल और मुसाफिर खाने को नमाजियों के लिए खोल दिया जाए और फिर ये एतिहासिक पल आया के गुरूद्वारे में नमाज़ हुई.
खबर बहुत बड़ी थी और बिलकुल सही वक़्त पर उस महाशक्ति (जिसे हम कई नामों से पुकारते हैं) ने अपना करिश्मा दिखाया जब कुछ बेवकूफ लोग मुसलमान और इस्लाम के लिए भारत को सुरक्षित नहीं बता रहे और अफवाहें फ़ैलाने का काम कर रहे हैं.
उस महाशक्ति ने एक बार फिर बताने की कोशिश की  के मैं ने तुम सब को एक बनाया था धर्म की दीवारे तो तुमने खुद खड़ी  की हैं. अब इनको गिरना भी तुमको ही होगा
 उस महाशक्ति ने ये सन्देश भी दिया के देखो मैं ने नमाज़ के लिए गुरूद्वारे के दरवाज़े खोल दिए अब इसके बाद भी तुम्हारी अक्ल तुम्हारी सोच के दरवाज़े न खुले तो तुमसे जियादा दुर्भाग्यशाली कौन है अभी भी वक़्त है समझ जाओ मैं एक ही हूँ तुम सब मेरे बन्दे हो आपस में भाई भाई हो सब एक हो.
मैं ने उसको बोला के आप इसके लिए किसी पत्रकार से सपर्क साधो इस समय इस तरह की ख़बरें समाचार पत्रों में व चैनलों पर आनी चाहिए. जब एक तरफ साम्प्रदायिक ताकतें अफवाहों का बाज़ार गर्म किये हुए हैं ऐसे में ये शुभ समाचार भारत में शांति व्यवस्था बनाये रखने में बहुत मददगार साबित होगा उसने वहां के पत्रकारों से संपर्क साधा और ये खबर अगले दिन हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई"
इस खबर से मुझे उतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी अगर मैं  एडिटर होता और मेरा बस चलता तो इस खबर को अखबार के फ्रंट पेज पर इतनी बड़ी हेडलाईन के साथ प्रकाशित करता के हमारे दुश्मन मुल्क अपनी अपनी राजधानी से भी इसको पढ़ लेते और कुछ सबक लेते और मेरे इस शेर के अर्थ समझ लेते जो मैं ने बड़े गर्व से कहा है:
हम जो हिन्दोस्तान से जाते
बच गए नाक कान से जाते
आपसी भाईचारे की ऐसी मिसाल सिर्फ और सिर्फ हिन्दोस्तान में ही मिल सकती है. लेकिन एक ओर से मुझे निराशा भी हुई के जब इलेक्ट्रोनिक मिडिया ने इस खबर को नहीं दिखाया हाँ सभी चैनल दिन भर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने की खबर दिखाते रहे.जब के अगर इलेक्ट्रोनिक मिडिया इस खबर को दिखाता तो बहुत दूर तक ये बात लोगों तक पहुँचती और अफवाहों पर विराम लगता इस खबर के एक हिंदी अखबार में खबर प्रकाशित होने से क्या होगा अखबार आजकल पढता कौन है वो तो बस जैसे तैसे चल रहे हैं सरकारी विज्ञापन पर मेरी नज़र में ये खबर तो सभी चैनलों पर दिन भर रात भर हफ्ते भर दिखाई जानी चाहिए थी.
मैं सोचने लगा कहाँ हैं वो लोग जो आसाम बर्मा बैंगलोर की खबरे शेयर पे शेयर कर के हमारे भारत में ज़हर फैलाने का काम कर रहे थे, कहाँ है वो शक्तियां जो भारत के हिन्दू मुस्लिम सिख समुदाय को लडवाना चाहती हैं और भारत को यू.पी बिहार की सीमाओं में बाटना चाहती हैं विदेशी ताकतों के इशारों पर अवाम को मंदिर मस्जिद के झगडे में डालकर तरक्की के रास्ते से भटकाती हैं.
ऐसी मिसालें जो देश के हित में हों उसे लोग शेयर नहीं करते बस अफवाहों को फ़ैलाने में ही बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं लेकिन जहाँ इस तरह के घिनोने लोग हैं वहीँ शुद्ध स्वस्थ मानसिकता वाले बुद्धिजीवीयों की भी कमी नहीं है जो माध्यम का सही उपयोग करना जानते हैं फेसबुक अखबार टी.वी चैनल ब्लोगर सभी से मेरा अनुरोध है के वो अपने अपने स्तर से उन साम्प्रदायिक शक्तियों को मुंहतोड़ जवाब दें और उन्हें अल्लामा इकबाल के मशहूर ग़ज़ल "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" जिसे अनोपचारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा  भी हासिल है के सही अर्थ बताये
श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो राकेश शर्मा ने इस ग़ज़ल के मतले का मिसरा ऊला(पहली पंक्ति) को पढ़ा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"

अल्लामा इकबाल ने ये ग़ज़ल 1905  में  लिखी थी और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाई थी .उस वक़्त अल्लामा इकबाल लाहौर के सरकारी कालेज में पढ़ाते थे.  उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया और कहा के आपको भाषण देना है. अल्लामा इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई.
यह ग़ज़ल हिन्दोस्तान से प्रेम का बेहतरीन नमूना है और अलग-अलग धर्मों  के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है.
1950 में मशहूर सितार वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुरों से सजाया और इस कालजयी रचना की धुन को भी अमर कर दिया.कमाल देखिये इसको लिखा एक मुसलमान ने सुरों से सजाया ब्राह्मण ने और गाया इसको पूरे भारत के अलग अलग धर्मों के लोगो ने मेरी नज़र में ये अखंड भारत के गंगा जमुनी तहज़ीब को दर्शाती हुई महान रचना है
पेश है उसी कालजयी ग़ज़ल का मतला और शेर:
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा ।।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।।
जय हिंद जय भारत
आदिल रशीद





Aadil Rasheed
New Delhi

INDIA

Tuesday, July 10, 2012

safar safar hai mera intzar mat karna سفر سفر ہے مرا انتظار مت کرنا ساحل سحری

میں لوٹنے کے ارادے سے جارہاں ہوں مگر 
سفر سفر ہے مرا انتظار مت کرنا ساحل سحری 
اردو ہندی ادب سے دلچسپی رکھنے والا شاید ہی کوئی شخص ہو جس نے یہ شعر نہیں سنا ہو ۔یہ مشہورشعر ہے شاعر ساحل سحری نینی تالی کاجنہوں نے کبھی دماغ کا کہنا نہیں مانا ہمیشہ دل کا کہا کیا اسی دل نے آج ان کے ساتھ بے وفائی کی اور دھڑکن بند ہوجانے کے سبب آج صبح ان کا انتقال ہوگیا۔اللہ انہیں جنّت میں اونچا مقام عطا فرمائے۔
مرحوم ساحل سحری سے میری بڑی قربت تھی وہ ہمیشہ میرا حوصلہ بڑھاتے تھے اور جب دہلی آتے تو ضرور ملاقات کرتے ۔انہوں نے مجھے بہت سے مشاعروں میں بلایا بھی یہ کہہ کرکہ ’’اچھی شاعری کو اچھے لوگوں تک پہنچنا چاہئے‘‘ میں بھی اور میری ٹوٹی پھوٹی شاعری بھی ان کے اس جذبے کی ہمیشہ ممنون رہے گی ۔وہ بڑے صاف دل اور صاف گو انسان تھے ۔کسی طرح کی مصلحت کو پسند نہیں کرتے تھے ۔
ایک بار ان کا یہی مصرع ’’سفر سفر ہے مرا انتظار مت کرنا ‘‘طرح کے طور پر دیا گیا جس پر میں نے یوں گرہ لگائی جو ان کے اس بڑے شعر سے بالکل الٹ تھی 
یہ بات سچ ہے مگر کہہ کے کون جاتا ہے 
سفر سفر ہے مرا انتطار مت کرنا 
کچھ عجیب سے لوگوں نے کچھ عجب سے انداز میں ان کو یہ شعر سنایا ۔انہوں نے انہیں کوئی جواب دئے بغیر فوراًجیب سے موبائل نکال کر انہی لوگوں کے سامنے مجھے فون لگایا اور ہنستے ہوئے کہا ’’بر خوردار مبارک ہو ہمارا ریکارڈ توڑ دیا ‘‘میں سٹپٹا گیا اور گھبراتے ہوئے میں نے کہا ’’استاد میں سمجھانہیں ‘‘ انہوں نے ہنستے ہوئے بغیر کسی کا نام لئے ہوئے کہا ’’کچھ لوگ ہمارے پاس آئے ہوئے ہیں اور تمہارا یہ شعر سنارہے ہیں جو تم نے میرے مصر ع پر مصرع لگایا ہے میں نے سوچاکہ تمہیں ان کی موجودگی میں ہی مبارک باد دے دوں۔ میرے اس وقت بھی اور اس کے بعد بھی کئی بار التجا کرنے پر بھی انہوں نے مجھے اُن عجیب سے لوگوں کے نام کبھی نہیں بتائے او راگر اب وہ اُن کے نام بتانا بھی چاہیں تو نہیں بتاسکتے کیوں کہ روحیں بولتی نہیں ہیں ان کو اپنی بات کہنے کے لئے جسم کی ضرورت ہوتی ہے او رجسم تو آج سپرد خاک ہوگیا۔
میں نے جب جب اُن سے ایسے عجیب آدمی نما کرداروں کے بارے میں بات کی تو انہوں نے کہا عادل میاں تم اپنا کام (ادبی خدمت )کرتے رہو اس ادبی سفر میں ابھی تم کو بہت سے عجیب عجیب کردار ملیں گے ۔
ساحل سحری بھی پیشے سے گھڑی ساز تھے اور میں بھی پیشے سے گھڑی ساز۔ ایک بار جب میں نے انہیں اپنا شعر سنایا ؂
اوروں کی گھڑیا ں ہم نے سنواری ہیں رات دن
اور اپنی اک گھڑی کی حفاظت نہ کر سکے
تو ان کی آنکھ نم ہوگئی اور انہوں نے میرے سر پر ہاتھ رکھ کر کہا ’’مبارک باد کے ساتھ مجھے افسوس ہے کہ یہ شعر مجھے کہنا چاہئے تھا ‘‘ 
مرحوم ساحل سحری سچّے شاعر سچّے انسان تھے انہوں نے کبھی مشاعرے پڑھنے کے لئے جوڑ توڑ کی راجنیتی نہیں کی کبھی داد حاصل کرنے کے لئے اپنے بندوں پر پرچی بھیجنے کا ڈھونگ بھی انہوں نے نہیں کیا ۔وہ اپنے آپ کو مطمئن کرنے کے لئے شعر کہتے تھے ۔جب تک ان کے استاد کنور مہندر سنگھ بیدی سحر (اسی لئے وہ سحر لکھتے تھے )زندہ تھے لوگ ان کے آگے پیچھے رہتے تھے بعد میں وہی دنیا جس نے ان سے لیا تو بہت کچھ مگر کسی نے انہیں دیا کچھ نہیں۔
ایک وقت پر مشاعروں پر راج کرنے والا بڑا شاعر مشاعرے کے مائک سے شیر کی طرح دہاڑنے والا شاعر (جس کی نقل کرکے بہت سے شاعر مشاعروں میں بہت کامیاب ہوئے )اپنی بڑھتی عمر کے ساتھ رفتہ رفتہ مشاعروں سے دوُر ہوتا گیااور آخر کار آج دنیا سے بھی بہت دور ہو گیا ۔لیکن اگر وہ چاہے بھی تو ادب اور ادب کے چاہنے والوں کے دل سے دوُر نہیں ہوسکتا ۔
عادل رشید 

Friday, July 6, 2012

monsoon ne lee angdayi aayi pehli barish aayi.by aadil rasheed मानसून गीत मानसून ने ली अंगडाई आई पहली बारिश आई आदिल रशीद


गीत  आदिल रशीद 
मानसून  
मानसून ने ली अंगडाई
आई पहली बारिश आई 

उमड़ घुमड़ कर आये बादल 
और धरती पर छाये बादल 
सब पेड़ों  की हुई धुलाई 
आई पहली बारिश आई 

इन्द्रधनुष आकाश में चमका 
हर बच्चा छूने को लपका 
रंगों की बारात है आई 
आई पहली बारिश आई 

अब गर्मी का चेहरा उतरा 
सब बच्चों का तन मन निखरा 
सब ने मिल कर कुल्फी खाई
आई पहली बारिश आई 

सखियों संग झूला झूलूँगी 
सावन में जी भर भीगूँगी 
भाई को लेने भेजो माई 
आई पहली बारिश आई 

मानसून ने ली अंगडाई
आई पहली बारिश आई 

Thursday, July 5, 2012

pak gaya dil taraqiyon se rasheed aao bachpan ki simt chalte hain by aadil rasheed 20-8-2004



पक गया दिल तरक्कियों से रशीद
आओ बचपन की सिम्त चलते हैं 
आदिल रशीद  
پک گیا دل ترقیوں سے رشید 
آو بچپن کی سمت چلتے ہیں
..عادل رشید 
20-08-2004 

Wednesday, July 4, 2012

dil ka rishta gamon se jod gaya khuab dikhla ke unko tod gay by aadil rasheed

v





दिल का रिश्ता ग़मों से जोड़ गया
 ख्वाब दिखला  के उनको तोड़ गया
उम्र भर सोचना है अब मुझको
 वो मुझे किस कमी पे छोड़ गया आदिल रशीद
دل کا رشتہ غموں سے جوڈ گیا خواب دکھلا کے انکو توڑ گیا
عمر بھر سوچنا ہے اب مجھ کو
 وہ  مجھے کس کمی پی چھوڈ گیا
 عادل رشید




zaroorat ghar me poori ho to hijrat kaun karta hai,,,aadil rasheed


Note: siyasat lafz jiska matlab hukumat,saltanat chalana hai wo to achhi baat hai lekin aaj kal logon ne iske bade gande matlab nikal liye hain.Do logon ke darmiyan badgumani paida karana,jojumle aapne nahin bhi kahe wo aapke naam se batana, logon ko aapas me ladwana aur tamasha dekhna is sher me "siyasat karne walon se" meri murad unhi zehni beemar logon se hai ..aadil rasheed

ये सच्ची बात कहने की जसारत कौन करता है
सियासत करने वालों से मुहब्बत कौन करता है
मुहब्बत बाल बच्चों और वतन की रोकती तो है
ज़रुरत घर में पूरी हो तो हिजरत कौन करता है
आदिल रशीद
जसारत=मर्दानगी,दिलेरी,जुर्रत,हिम्मत.
हिजरत=पलायन
یہ سچی بات کہنے کی جسارت کون کرتا ہے
سیاست کرنے والوں سے محبت کون کرتا ہے
محبت بال بچوں اور وطن کی روکتی تو ہے
ضرورت گھر میں پوری ہو تو ہجرت کون کرتا ہے
عادل رشید
 — s

Monday, July 2, 2012

yahan se le ke waha tak waqaar us ka hai jo hai husain ka parwardigar uska hai ..aadil rasheed

yahan se le ke waha tak waqaar us ka hai
jo hai husain ka parwardigar uska hai 
 aadil rasheed 
یہا سے لے کے وہاں تک وقار اس  کا ہے
جو ہے حسین کا پروردگار  اسکا ہے
عادل رشید
यहाँ से ले के वहाँ तक वकार उसका है
जो है हुसैन का परवरदिगार उसका है
आदिल रशीद

Sunday, July 1, 2012

I Love India..ham jo hindustan se jate-bach gaye naak kaan se jaate...aadil rasheed tilhari


हम जो हिन्दोस्तान से जाते
बच गए नाक, कान से जाते
आदिल रशीद
ہم جو هندوستان سے جاتے
بچ گئے ناک، کان سے جاتے
عادل رشید
 — 


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Wednesday, June 27, 2012

teri taareef likhun bhi to aakhir kis tarah likhun,nazar jo dekhti hai wo qalam to likh nahin sakta..aadil rasheed




تیری تعریف لکھوں  بھی تو آخر کس طرح لکھوں 
نظر جو دیکھتی ہے وہ قلم تو لکھ نہیں سکتا
عادل رشید
तेरी तारीफ़ लिक्खूं भी तो आखिर किस तरह लिक्खूं 
नज़र जो देखती है वो कलम तो लिख नहीं सकता 
आदिल रशीद

wafa ka lafz to duniya ki har zaban me tha samajh me aaya hai abbas ke hawale se....aadil rasheed


wafa ka lafz to duniya ki har zaban me tha
samajh me aaya hai abbas ke hawale se....aadil rasheed